Friday, November 12, 2010

My EXperience at JNU

जवाहर लाल नेहरू विश्‍वविद्यालय में मैं लगभग 9 वर्ष रहा। इस दौरान बहुत से खट्टे मीठे अनुभव रहे। उन अनुभवों की असंख्‍य छवियां मौजूद हैं ज़हन में लेकिन जगह के अभाव में मैं दो का ही जिक्र करूंगा।

इस दोनों टुकड़ों का पोलिटिकल जेनर अलग है। पहला अनुभव कैम्‍पस की एक ऐसी छवि देता है जो लगभग अनूठी सी है और दूसरे में राजनैतिक सरगर्मी तो थी लेकिन अब पुराने होने के नाते उन्‍हें ढंकते हुए उसे एक आम लेकिन बेहद खास किस्‍म की संवेदना के साथ प्रस्‍तुत करने का प्रयास किया गया है।

एक

बात सन् 95 के आस पास की है एक दिन सोमवार की सुबह एस बी आई की एक्‍सटेंशन ब्रांच में पैसे निकालने पहुंचा तो देखा लम्‍बी कतार लगी हुई है। उन दिनों सोमवारों को यही हाल हो जाया करता था। एक्‍सटेंशन ब्रांच में दो कर्मी ही बैठते थे। सूटकेस में पैसे लेकर वे लगभग दस बजे वहां पहुंचते थे लेकिन कतार सुबह नौ बजे से ही लगना शुरू हो जाती थी। बैंक कर्मियों के आते आते तो ये कतार कभी कभी कावेरी हॉस्‍टल के गेट तक पहुंच जाती थी। सो कुछ इसी तरह के एक दिन जब मैं वहां पहुंचा तो कतार काफी लम्‍बी थी और नीलिगिरि ढाबे तक पहुंच चुकी थी। मैं भी लइन में खडा़ हो गया और जब बैंक के अंदर पहुंचा तो देखा कि बैंक काउंटर के पीछे एक ही कर्मी काम कर रहा था। ये कम्‍प्‍यूटर हीन युग था। उस कर्मी को ही पे इन या विद्ड्राल फार्म चेक करने थे पैसे लेने या देने थे और रजिस्‍टर में इन्‍ट्री भी करनी थी। इतने सारे कामों को वह अकेले सम्‍हाल रहा था। तभी मेरी नजर उस काउंटर पर पड़ी। देखा बैंक कर्मी ने सौ के नोट का एक बंडल खोल कर काउंटर पर रख दिया। लेकिन क्‍यों ? ये मेरी समझ में तब आया जब अगले छात्र ने उसमें से स्‍वयं विद्ड्राल स्‍लिप पर भरी रकम उस गड्डी में से निकाल ली। ये क्रम आगे भी चलता रहा। जब मेरा नम्‍बर आया तो मुझसे रहा नहीं गया ओर मैंने पूछ लिया कि भाई साहब, आप इस तरह से क्‍यों कर रहे हैं अगर किसी ने एक नोट भी गलती से निकाल लिया तो? साहब ने बडे़ इत्‍मीनान से जवाब दिया ‘’पिछले तीन दिनों मैं अकेला ही काम कर रहा हूं और ये गलती 2 बार हो चुकी है और दोनों ने पैसे वापस कर दिए। और जे एन यू के छात्रों को मैं आपसे ज्‍यादा जानता हूं।‘’

अभी कुछ साल पहले जब मैं जे एन यू गया तो देखा कि बैंक के बाहर एक गनमैन खड़ा है। पता नहीं किस की सुरक्षा के लिए उसे तैनात किया गया था...

दो

ये घटना सन् 97 की है। मैं सतलज छात्रावास में रहता था और 7 मार्च को उसका हॉस्‍टल डे था। सभी तैयारियां थी और लोगों में जबरदस्‍त उत्‍साह था। शाम हुई उत्‍सव शुरू हुआ। देर रात तक झेलम लॉन्‍स में ऑरकेस्‍ट्रा भी बुलाया गया था। उस ऑरकेस्‍ट्रा में लड़कियों को नाचने के लिए भी बुलाया गया था। ये बात मेरे समेत अनेक लोगों को खटकी, लेकि तब जो अति हो गई जब कुछ लोगों ने उनके नाचने पर सीटियां बजाना शुरू कर दिया। विरोध किया गया। अपने साथ रहने वालों से झगड़ा किया। थोड़ी हाथापाई भी हुई। बवाल बढ़ा और सतलज के खिलाफ एक आंदोलन सा छिड़ गया। इसमें मुझ जैसे कुछ सतलज वासी भी शामिल थे। पैम्‍फलेट बाजी भी हुई। सबके तर्क सामने आए। इस बीच एक बेहद भद्दा बेनाम पैम्‍फलेट आया जिसने सतलज छात्रावास के छात्रों को बैकफुट पर आने पर मजबूर कर दिया। पैम्‍फलेट में भदेस भाषा में छात्राओं के लिए अनर्गल टिप्‍पणियां की गई थीं।

8 मार्च को ये पैम्‍फलेट आया था और इसी दिन महिला दिवस भी मनाया जाता है। समूचे कैम्‍पस की छात्राओं ने इसके विरोध में मशाल जलूस निकाला। सतलज के छात्रों ने भी इस पैम्‍फलेट का विरोध करना चाहा था लेकिन वे पहले से ही टारगेटेड थे सो तय किया गया कि हॉस्‍टल के गेट के अन्‍दर ही रहकर बैनर दिखकर विरोध जता दिया जाएगा। इस उद्देश्‍य से सतलज के सारे छात्र ( उनको छोड़कर जो पहले से ही हॉस्‍टल डे के कार्यक्रम के विरोध में थे।) हास्‍टल के गेट पर जुलूस की प्रतीक्षा करने लगे। विरोध जुलूस कुछ ज्‍यादा ही लम्‍बा हो गया और देरी भी। छात्रावासियों का धैर्य जवाब दे गया ओर वे मुख्‍य मार्ग की ओर मोड़ तक आ गये। अब उनको वापस भेजने की नवोदित नेताओं की हर कोशिश नाकाम हुई। वे वहीं डट गये और उधर से जुलूस आगे बढ़ आया और झेलम हॉस्‍टल जाने के लिए रास्‍ता मांगा। इस पर सतलज वासियों ने मांग रखी कि पहले पिछले दिन एक लड़की द्वारा प्रयुक्‍त अभद्र भाषा के लिए माफी मांगे। दोनों पक्ष अड़ गए। धरना शुरू हो गया।

रात 9 बजे शुरू हुआ धरना रात 1 बजे तक चलता रहा। प्रशासन के अधिकारी आकर समझाइश करने की कोशिश करके चले गए। धरना चलता रहा। 3 बज गए। अधिकांश लोग उठकर जाने लगे। कुछ जिद्दी जीव (लगभग 50) बैठे रहे। इसी बीच एक सीनियर छात्र ने उठकर कह दिया कि अगर किसी को ठेस लगी है तो उसके लिए माफी' । इस पर सतलज के छात्रों को तो वापस जाने का सुनहरा मौका मिल गया। लेकिन मजा तो तब आया जब जुलूस में आई लडकियों ने उन्‍हें रोक लिया और कहा कि कोई माफी वाफी नहीं मांगी गई है। आप लोग अपना धरना जारी रखें और हम भी अपना धरना जारी रखेंगे

शायद ये स्‍पिरिट जिसमें ये बात कही गई हास्‍यास्‍पद लगे लेकिन अगर देखें तो ये वो भावना थी जिसमें हम आपके विरोध करने और आपके इस अधिकार के लिए खुद भी जोखिम उठाने के लिए भी तैयार हैं। ऐसा कहने वाले तो आपको खूब मिलेंगे लेकिन रात के तीन बजे धरने पर अपने विरोधियों को साथ बैठाने की ये कोशिश शायद कहीं और न मिले।

2 comments:

  1. नवनीत बहुत खूब. पुराने दिन याद आ गये. ब्लॉग को जारी रखें. बधाई.

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  2. एक अच्छी,ईमानदार कोशिश .

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